शनिवार की आरती |
Shaniwar Ki Aarti

जय जय रविनंदन, जय दुःख भंजन
जय जय शनि हरे
जय भुज चारी धारण कारी,
दुष्ट दलन। । जय । ।
होय कुपित नित करत दुखित,
धनि को निर्धन । । जय । ।
तुम धर अनूप याम का स्वरुप हो,
करत बंधन । । जय । ।
तव नाम जो दस तोहि करत सो बस,
जो करे रटन । । जय । ।
महिमा अपार जग में तुम्हार,
जपते देवतन । । जय । ।
तव नैन कठिन नित बरे अगिन,
भैंसा वाहन । । जय । ।
प्रभु तेज तुम्हारा अतिहिं करारा,
जानत सब जान । । जय । ।
प्रभु शनि दान से तुम महान,
होते हो मगन । । जय । ।
प्रभु उदित नारायण शीश,
नवायन धरे चरण । । जय । ।
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